बुखार अचानक तेज आने पर न करें लापरवाही
*उप मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर संतोष कुमार
संभल। डेंगू बुखार, इंसेफेलाइटिस, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू और कोविड जैसी संक्रामक बीमारियों के सामान्यx लक्षणों में बुखार भी शामिल है। इसलिए अगर किसी को किसी भी प्रकार का बुखार हो तो हल्के में न लें । आशा कार्यकर्ता को बताएं और नजदीकी सरकारी अस्पताल पहुंचे। अस्पताल पहुंचने के लिए 108 नंबर की निःशुल्क एंबुलेंस सेवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं । सरकारी अस्पताल में बीमारियों के निःशुल्क इलाज के लिए सभी इंतजाम हैं । यह संदेश सात अक्टूबर से शुरू होकर 21 अक्टूबर तक चलने वाले दस्तक पखवाड़े के दौरान आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर पहुंचा रही हैं। उप मुख्य चिकित्सा धिकारी डॉ संतोष कुमार सिंह ने बताया कि दस्तक पखवाड़ा विशेष संचारी रोग नियंत्रण माह का एक घटक है, जिसके तहत आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की विशेष भूमिका होती है। इस पखवाड़े के दौरान गृह भ्रमण के दौरान आशा और आंगनबाड़ी की टीम विभिन्न रोगों के नियंत्रण और उपचार की जानकारी देने के साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन की गतिविधियां संचालित कर रही हैं। बीमारी से लक्षणयुक्त व्यक्तियों को सूचीबद्ध करना है और कुपोषित बच्चों का भी चिन्हांकन करना है। पखवाड़े के दौरान वीएचएसएनडी समिति की बैठक, क्लोरिनेशन डेमो बैठक, संचारी रोग व एईएस समूह की बैठकें, छाया वीएचएनडी की बैठक, स्वयं सहायता समूह और मातृ समिति की बैठकें भी कराई जाती हैं। संतोष कुमार सिंह ने बताया कि अभियान का मुख्य मकसद इंसेफेलाइटिस और मच्छरजनित रोगों पर नियंत्रण करना है। बुखार के रोगियों की सूची, कुपोषित बच्चों की सूची, कोविड के संभावित रोगियों की लाइन लिस्टिंग और क्षय रोग के लक्षण वाले व्यक्तियों की सूची बना कर उन्हें चिकित्सकीय मदद भी पखवाड़े के दौरान दिलवाना है। दस्त के रोगियों को जिंक और ओआरएस भी उपलब्ध कराया जाता है। मच्छरों के सर्वाधिक प्रजनन स्रोत वाले क्षेत्रों की सूची भी उपलब्ध करवानी है। साथ ही 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे वाले घरों पर स्टीकर भी लगाया जा रहा है। संभल विकासखंड क्षेत्र के हातिम सराय इलाके की रामा के पति ऑटो चलाते हैं। उनकी दूसरी बेटी कीर्ति जब 1 वर्ष 4 माह की थी तो उसे तेज बुखार मालूम हुआ। वह बताती हैं कि आशा कार्यकर्ता शीतल ने उन्हें बताया था कि बुखार का इलाज नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर संभव है। आशा की मदद से बच्ची को पीएचसी ले गयीं तो इलाज के दौरन उसकी हालत बिगड़ने के साथ बेहोशी आने लगी। चिकित्सक डॉ नीरज ने इंसेफेलाइटिस की आशंका जताते हुए जिला अस्पताल रेफर कर दिया। शीतल बताती हैं कि जिला अस्पताल में हफ्ते भर उनकी बच्ची का इलाज चला और वह पूरी तरह से ठीक हो गयी। अगर अस्पताल ले जाने में देरी होती तो बुखार की जटिलताएं बढ़ सकती थीं। अब कीर्ति सामान्य जीवन जी रही हैं।