आर्य समाज के संस्थापक, वेदों के प्रचारक महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती

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चंदौसी सम्भल –: महापुरुष स्मारक समिति एवम सर्व समाज जागरुकता अभियान (भारत) के संयुक्त तत्वावधान में महान समाज सुधारक एवम स्वतंत्रता की नींव रखने वाले, आर्य समाज के संस्थापक, वेदों के प्रचारक महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती सीता रोड स्थित विनायक कालोनी में नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी के आवास पर धूमधाम से मनाई गई।

मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने महर्षि दयानंद सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। अध्यक्षता श्री मति सृष्टि सिंह (नगर उपाध्यक्ष सर्व समाज जागरुकता अभियान) ने की। संचालन ब्राह्मण महासभा के नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी ने किया। विशिष्ट अतिथि श्री मति रश्मि शर्मा हरद्वारी लाल मिश्रा, नगर अध्यक्ष पण्डित सच्चिदानन्द शर्मा, विवेक मिश्रा अशोक पाठक ,श्री मति सत्यप्रिया मिश्रा डॉक्टर शिवांगी मिश्रा (बी डी एस), श्री राम सिंह, रहे।

व्यवस्थापक किशन सिंह, हर्ष तिवारी, उत्कर्ष तिवारी रहे। मुख्य अतिथि भारतीय ब्राह्मण महासभा कवि माधव मिश्र ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824ई को मोरबी टंकारा गुजरात में हुआ था। आपके पिता कर्षन लाल तिवारी एवम मां यशोदाबाई थीं।

महाशिवरात्रि के दिन की घटना ने मूलशंकर तिवारी का जीवन ही बदल दिया। उनके बचपन का नाम मूलशंकर तिवारी था। महाशिवरात्रि का दिन था पिता ने कहा कि व्रत रखो रात में भगवान शिव आकर शिवलिंग पर चढ़ाएं गए प्रसाद को ग्रहण करेंगे। मन्दिर में पूरा परिवार रात्रि में रुका लेकिन रात्रि में मूलशंकर (दयानंद सरस्वती) सोए नहीं बल्कि भगवान शिव के आने की प्रतिक्षा कर रहे थे तभी शिवलिंग पर चूहे चडकर प्रसाद खाने लगे। सुबह पिता को उन्होंने रात्रि की घटना बताते हुए कहा कि भगवान जब अपने प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकते हमारी कैसे करेंगे।

इस के बाद उन्होंने वेदों उपनिषदों का अध्यन प्रारंभ किया। पिता ने सोचा पुत्र संन्यासी न बन जाए इसलिए विवाह करना चाह लेकिन उन्होंने 1846में घर छोड़ दिया। उन्हें गुरु ब्रिजानंद जी मिले उनसे गुरु दीक्षा ली। समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कुरूतियो को मिटाने के लिए साथ ही अंग्रेजो से भारत को मुक्त कराने के लिए उपदेश देने लगे। अव गुरु ने नाम दिया महर्षि दयानंद सरस्वती।महर्षि ने सती प्रथा, बाल विवाह, का विरोध किया। विधवा विवाह के पक्ष में कार्य किया।

1855में हरिद्वार में तात्या टोपे, झांसी की रानी सहित देश को आजाद कराने के लिए योजना बनाई। 1875में आर्यसमाज की स्थापना की। उन्हें गुरु मानने वालो में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, क्रान्तिकारी लाला लाजपतराय, सुभाष चन्द्र बोस सरीखे नेता थे। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश जेसे ग्रंथ की रचना करते हुए वेदों उपनिषदों के भाष्य लिखे। षण्यंत्र के तहत 30अक्टूबर 1883को मृत्यु हो गई। जिसमें अंग्रेजो का षण्यंत बताया जाता है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों की संस्कृति का प्रचार प्रसार किया

अध्यक्षता करते हुए सृष्टि सिंह, नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी, हरद्वारी लाल मिश्रा, रश्मि शर्मा, डॉक्टर शिवांगी मिश्रा, सत्यप्रिया मिश्रा, नगर अध्यक्ष पण्डित सच्चिदानन्द शर्मा, अशोक पाठक, विवेक मिश्रा, राम सिंह ने विचार व्यक्त किए। किशन सिंह, हर्ष तिवारी, उत्कर्ष तिवारी, गोपी सिंह पवन सिंह, अमन सिंह आदि मौजुद रहे।