यूपी न्यूज़ भारत चंदौसी –: महापुरुष स्मारक समिति एवं सर्व समाज जागरूकता अभियान(भारत)के संयुक्त तत्वावधान में स्वतंत्रता दिलाने के लिये 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के संस्थापक सदस्य,राजनीति के पितामाह,ब्रिटिश संसद के प्रथम एशियाई सांसद,स्वराज्य की मांग करने वाले दादा भाई नैरोजी एवं पूर्व राष्ट्रपति,शिक्षाविद,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (शिक्षक दिवस) की जयंती धूमधाम से कृष्णानगर गली नम्बर 2 में( ब्राह्मण महासभा के जिलाध्यक्) पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के आवास पर मनाई गई।सर्वप्रथम मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीयअध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने दोनों के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।अध्यक्षता किशन लाल शर्मा (प्रबन्धक आदर्श बाल विद्या मंदिर जूनियरहाईस्कूल)ने की,संचालन नगर महामंत्री (ब्राह्मण महासभा) पंडित बृजेन्द्र प्रसाद तिवारी ने किया।व्यवस्थापक नगर अध्यक्ष(ब्राह्मण महासभा) पंडित सच्चिदानंद शर्मा रहे।विशिष्ट अतिथि नत्थू सिंह(एडवोकेट),डॉ जितेन्द्र वर्मा,हेमन्त कुमार गुप्ता,शिवशंकर मिश्रा रहे।मुख्य अतिथि /मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीयअध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने जयन्ति कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि दादा भाइ नैरोजी का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में अग्रगण्य है।वह 1886 एवं 1906 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।देश औऱ समाजकी सेवा के लिये समर्पित दादा भाई नैरोजी नरमपंथी नेताओं के आदर्श थे ही,वही लोकमान्यतिलक जैसे भी गरमपंथी नेता उन्हें प्रेणना स्रोत मानते थे।
वह गोपालकृष्ण गोखले और महात्मागांधी के गुरु भी थे।दादा नैरोजी ने यह माँग उठाई कि इंग्लैंड के पार्लियामेंट में कम से कम एक भारतीय के लिये भी सीट सुरक्षित होनी चाहिए ।उनकी प्रखर प्रतिभा से प्रभावित और अकाट्य तर्कों से पराजित होकर अंग्रेजों ने उनकी यह मांग मान ली ।उन्हें ही इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने के लिये चुना गया।उन्होंने अंग्रेजो के पार्लियामेंट में भारत के बिरोध को प्रस्तुत किया ।उन्होंने ही प्रथम बार स्वराज्य की मांग उठाई।दादा भाई नैरोजी ने ब्रिटिश शासन से कहा कि हम न्याय चाहते हैं ,ब्रिटिश नागरिक के समान अधिकार का ज़िक्र नहीं करते,हम स्वशासन चाहते है।दादा भाई नैरोजी का जन्म 4 सितम्बर 1825 को मुंबई के पारसी परिवार में हुआ।30 जून 1917 को मृत्यु हुई।राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने आगे बोलते हुए कहा हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली
राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास प्रेसिडेंसी के चित्तूर जिले के तिरुत्तनी ग्राम में हुआ था।उनके पिता वीरास्वामी तथा सीताम्मा थीं।उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए दर्शन शास्त्र में एम ए किया।1918 में मैसूर महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक बने।उन्होंने धर्म,ज्ञान,सत्य पर आधारित भारतीयसंस्कृति का प्रचार प्रसार किया।उन्होंने वेद,उपनिषद,बाइबिल का गहन अध्धयन किया।वह कहते थे हम सुख और दुःख में समभाव रहना सीखें तभी भारतीय दर्शन को समझ सकते हैं।वह विश्व को एक विद्यालय मानते थे।वह कहते थे शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जासकताहै।विश्व विद्यालयो ने उन्हें मानद उपाधि प्रदान की।वह कई विश्व विद्यालयों के वाइसचांसलर तथा चांसलर भी रहे।1946 में यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व किया।श्री मिश्रा ने कहा शिक्षक समाज का ही नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माणका अतिमहत्वपूर्ण स्तंभ है।वैदिककाल से गुरु शिष्य का सम्बंध सम्मान जनक स्थिति में अनवरत रूप से चला आ रहा है ।शिक्षक ज्ञानार्जन का अनन्य साधक ,अनगिनत प्रेरणाओं का जनक है।जो अपने समस्त जीवन को तेल के दीपक की तरह जलाकर एक ऐसी नस्ल तैयार करता है ,जो परिवार,समाज और राष्ट्र रूपी उद्यान में विभिन्नप्रकार के पुष्पों को सुगन्धित करती है।पहले शिक्षक अपने शिष्य को संतान की तरह रखते थे।शिष्य भी गुरु की आज्ञा का पालन करतेथे।शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से नई पीढ़ी के संस्कारों में गिरावट आयी है।युवा पीढ़ी उत्थान व प्रगति के नाम पर पाश्चात्यसंस्कृति की ओर आकर्षित है।ऐसे समय मे डॉ सर्वपल्लीराधाकृष्णन के विचार प्रासंगिक है।17 अप्रैल 1975 को डॉ सर्वपल्लीराधाकृष्णन का स्वर्गवास हो गया।अध्यक्षता करते हुए किशन लाल शर्मा,सञ्चालक बृजेन्द्र प्रसाद तिवारी,व्यवस्थापक नगर अध्यक्ष पंडित सच्चिदानंद शर्मा,नत्थू सिंह एडवोकेट,डॉ जितेन्द्र वर्मा,हेमन्त कुमार गुप्ता,अनिलकुमारसिंह राघव ने विचार व्यक्त किये।शिवशंकर मिश्रा,भास्कर मिश्रा,संजीव मिश्रा,अंशुल मिश्रा,श्री मति गंगा देवी,विपिन कुमार,धार्मिक दीक्षित आदि उपस्थित रहे।अंत मे शान्ति पाठ किया गया।शिक्षक दिवस के उलक्ष्य में स्कूल प्रबन्धक किशन लाल शर्मा ,शिक्षक बृजेन्द्र प्रसाद तिवारी को मुख्य अतिथि एवं व्यवस्थापक द्वारा अंगबस्त्र उड़ाकर सम्मानित किया गया।