सम्भल/चन्दौसी (राकेश हर्ष वर्धन)। नगर के यदुवंशी गार्डन में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ तथा संस्कार भारती सम्भल के संयुक्त तत्वाधान में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और हिन्दी साहित्य विषय पर एक संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। डा0 अमिता दुबे प्रधान संपादक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के संयोजन में प्रथम सत्र में आयोजित संगोष्ठी का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डा0 राजनारायण शुक्ल अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ , विशिष्ट अतिथिगण डा0 पवन कुमार शर्मा, पवन कुमार आईएएस, निदेशक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, मनीष बंसल जिलाधिकारी संभल, डा0 सुधाकर आशावादी प्रांतीय महामंत्री संस्कार भारती मेरठ प्रान्त आदि ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर व पुष्प अर्पित कर किया।
संगोष्ठी की अयक्षता डा0 सदानन्द प्रताप गुप्त कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ ने की तथा संचालन डा0 अमिता दुबे ने किया। इस संगोष्ठी में संबधित विषय पर अपने सारगर्भित विचारों से वक्ताओं ने सभी को संबधित विषय को विस्तार से अवगत कराते हुए उनका ज्ञानवर्धन किया। संगोष्ठी के दौरान अतिथिगण द्वारा रमेश अधीर की पुस्तक और क्या हैं आप का अनावरण भी किया गया।
द्वितीय सत्र में डा0 सौरभकान्त शर्मा के संयोजन में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें भूषण त्यागी बनारस, बलराम श्रीवास्तव मैनपुरी, दीपक गुप्ता फरीदाबाद, जयकृष्ण राय तुषार प्रयागराज, डा0 सोनरुपा विशाल बदायूं, डा0 शुभम त्यागी मेरठ, जमुना प्रसाद उपाध्याय अयोध्या, पुष्पेन्द्र कुमार कानपुर आदि कवियों ने अपने काव्य पाठ से सुधी श्रोताओं को देर शाम तक काव्य रस में डुबोये रखा।
इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता जमुना प्रसाद उपाध्याय ने की तथा संचालन डा0 सौरभकान्त शर्मा ने किया। काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ डा0 शुभम त्यागी की सुरीली आवाज में मां सरस्वती की वन्दना की प्रस्तुति तथा भूषण त्यागी द्वारा भगवान राम के स्मरण की प्रस्तुति के साथ किया गया। प्रयागराज से पधारे जयकृष्ण राय तुषार ने सियासतदारों पर तंज कसते हुए कहा कि गले में क्रास पहने माथे पर चन्दन लगाती है सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है।
भूषण त्यागी ने शहीदों को याद करते हुए कहा कि हंसते हंसते जो सरहद पर जूझ गया एक दीप उनकी खातिर भी जला सखे। बलराम श्रीवास्तव ने कहा कि प्राण पर देह का आवरण जिन्दगी देह के ग्रंथ का व्याकरण जिन्दगी, रावणी शक्ति जब संत बनकर चली तो लगा जानकी का हरण जिंदगी। पुष्पेन्द्र कुमार पुष्प ने कुछ यूं कहा मुझे दूर कहीं तू ले चल मन जहां मानवता का ़त्रास न हो किसी राम को फिर बनवास न हो हो दिव्य जहां का वातावरण।
डा0 शुभम त्यागी ने कहा कि शहीदों की चलो मिलकर के कोई बात हो जाये भले अब दिन निकल जाये भले ही रात हो जाये, कहानी राजा रानी की न मां हमको सुनाना तुम कहानी अब शहीदों की नयी सौगात हो जाये। नगरवासियों की चिर परिचित तथा लोकप्रिय कवियत्री डा0 सोनरुपा विशाल ने प्यार में समर्णण के भाव को व्यक्त करते हुए कहा कि प्यार में डूबना ही पड़ता है प्यार में आचमन नहीं होता। उन्होने जिन्दगी में प्यार के महत्व को समझाते हुए कहा कि हां तुम्हारे बस तुम्हारे प्यार से दिन हुए सारे मेरे त्योहार से। उन्होने काव्य रस के अन्य रंग घोलते हुए कहा कि कालिमा के कंचनी बदलाव का गीत गाना है हमें सदभाव का। उन्होने कहा दिल में जाने कितनी चाहें होती हैं चलने की दो चार ही राहें हेती हैं, चुप रहकर भी चैन कहां मिल पाता है खामोशी की अपनी आहें होती हैं।
कवि दीपक गुप्ता ने कहा कि गालियां, ठोकर औ ताने क्या नहीं खाना पड़ा तब कहीं जाकर हमारे पेट में दाना पड़ा, आप मेरी रुह को महसूस ही न कर सके आपकी खातिर मुझे ये जिस्म महकाना पड़ा। डा0 सौरभकान्त शर्मा नेे कहा कि प्रत्येक हाथ को काम मिले कोई न भूखा नंगा हो सबके घर हो खुशहाली खाद्यान्न भरें खलिहानों में बेटी के पीले हाथ हो न लाश मिले बागानों में। अंत में जमुनाप्रसाद उपाध्याय ने अपने काव्य पाठ में कहा कि धान से गेहूं से जब गोदाम सारे भर गये पुंछते हो पेड़ से इन पत्तियों ने क्या दिया, जो चिरागों में जरा सी रोशनी है हमसे है देश को इन लाल नीली बत्तियों ने क्या दिया। उन्होने कहा कि कभी तो आओ मैं अब भी वहीं पर रहता हूं महल के सामने जो छप्पर दिखयी देता है। उन्होने आजकल कवियों की मजबूरी व्यक्त करते हुुए कहा कि गजल की शान से वफादारी भी करनी है मगर इस पेट की खातिर अदाकारी भी करनी है। अंत में सभी कविगण को संस्कार भारती जिला सम्भल इकाई द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान कर तथा शाल एवं पगड़ी पहना कर सम्मानित किया गया।