आदर्श बाल विद्या मंदिर में सर्वपल्ली राधाकृष्णन जयन्ति (शिक्षक दिवस)धूमधाम से मनाई,

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यूपी न्यूज़ भारत चंदौसी

आदर्श बाल विद्या मंदिर (जूनियरहाईस्कूल)कृष्णानगर चन्दौसी में पूर्व राष्ट्रपति,शिक्षाविद,डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जयन्ति (शिक्षक दिवस)धूमधाम से समारोह पूर्वक मनाई,मनाया गया। सर्वप्रथम मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीयअध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।अध्यक्षता किशन लाल शर्मा (प्रबन्धक आदर्श बाल विद्या मंदिर जूनियरहाईस्कूल) ने की संचालन शिक्षक राजवीर सिंह ने किया विशिष्ट अतिथि श्री ओमप्रकाश पिप्पल (प्रधानाचार्य),श्री जीवन दास शर्मा(शिक्षक),रामकुमार शर्मा(सेवानिवृत्त शिक्षक),शिक्षिका ऋचा प्रकाश सैनी,शिक्षिका अनीता कुमारी,शिक्षिका प्रेरणा,शिक्षिका राधिका कुमारी,शिक्षिका नीशू कुमारी रही।मुख्य अतिथि /मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने कहा हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली
राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास प्रेसिडेंसी के चित्तूर जिले के तिरुत्तनी ग्राम में हुआ था।उनके पिता वीरास्वामी तथा सीताम्मा थीं।उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए दर्शन शास्त्र में एम ए किया।1918 में मैसूर महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक बने।उन्होंने धर्म,ज्ञान,सत्य पर आधारित भारतीयसंस्कृति का प्रचार प्रसार किया।वह विश्व को एक विद्यालय मानते थे।वह कहते थे शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जासकताहै।विश्व विद्यालयो ने उन्हें मानद उपाधि प्रदान की।वह कई विश्व विद्यालयों के वाइसचांसलर तथा चांसलर भी रहे।1946 में यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मिश्राजी ने कहा ” शिक्षक समाज का ही नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माणका अतिमहत्वपूर्ण स्तंभ है “।वैदिककाल से गुरु शिष्य का सम्बंध सम्मान जनक स्थिति में अनवरत रूप से चला आ रहा है ।शिक्षक ज्ञानार्जन का अनन्य साधक ,अनगिनत प्रेरणाओं का जनक है।जो अपने समस्त जीवन को तेल के दीपक की तरह जलाकर एक ऐसी नस्ल तैयार करता है ,जो परिवार,समाज और राष्ट्र रूपी उद्यान में विभिन्नप्रकार के पुष्पों को सुगन्धित करती है।पहले शिक्षक अपने शिष्य को संतान की तरह रखते थे।शिष्य भी गुरु की आज्ञा का पालन करतेथे।

शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से नई पीढ़ी के संस्कारों में गिरावट आयी है।युवा पीढ़ी उत्थान व प्रगति के नाम पर पाश्चात्यसंस्कृति की ओर आकर्षित है।ऐसे समय मे डॉ सर्वपल्लीराधाकृष्णन के विचारों पर चलकर बेहतर समाज तथा देश का निर्माण सम्भव है । भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिये आवश्यक है शिक्षक निश्वार्थ भाव से छात्र छात्राओ को शिक्षा देकर प्रेरित करें।यही नई पीढ़ी भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाएगी ।विद्यार्थियों को चाहिए कि वह शिक्षकों का सम्मान आदर करे । मिश्रा जी ने कहा कि 17 अप्रैल 1975 को डॉ सर्वपल्लीराधाकृष्णन का स्वर्गवास हो गया। उन्हें 1954 में प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्रप्रसाद द्वारा भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

अध्यक्षता करते हुए किशन लाल शर्मा,सञ्चालक राजवीरसिंह,व्यवस्थापक जीवन दास शर्मा,बिशिष्ट अतिथि प्रधानाचार्य ओमप्रकाश पिप्पल,रामकुमार शर्मा(सेवानिवृत्त अध्यापक),शिक्षिका -ऋचा प्रकाश सैनी,प्रेरणा,राधिका कुमारी,अनीता कुमारी,नीशू कुमारी,ने विचार व्यक्त कर समारोह में शिष्य शिक्षक की परंपरा को जीवंत बनाये रखने पर जोर दिया।कु पायल,कु न्याशा,कु बेवी,कु अंशिका,कु सोनी,कु गुँजन,राजकुमार,अमित,अनुज,कु सुरभि,गुरुवेंद्र,विजय कुमार,दीपांशु,अरुण कुमार,कु सृष्टि,कु सुहानी,ने कविता ,भाषण द्वारा प्रस्तुति दी।शिक्षक दिवस पर लेखनी देकर कक्षा में समय से प्रतिदिन आने वाले छात्र छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता द्वारा सम्मानित किया गया।