चंदौसी में महाराणा प्रताप की जयंती धूमधाम से मनाई गई

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संभल चंदौसी ·:सर्व समाज जागरुकता अभियान भारत एवम महापुरुष स्मारक समिति के संयुक्त तत्वावधान में महान देशभक्त वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह की पुण्य तिथि विनायक कालोनी स्थित ब्राह्मण महासभा के नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी के आवास पर मनाई गई। सर्व प्रथम मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। अध्यक्षता श्री मति सृष्टि सिंह (उपाध्यक्ष सर्व समाज जागरुकता अभियान भारत) ने की। संचालन ब्राह्मण महासभा के नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी ने किया। कार्यक्रम संयोजक पण्डित सुरेश चन्द्र शर्मा रहे। विशिष्ट अतिथि श्री राहुल शर्मा, श्री मति सत्यप्रियां मिश्रा, डॉक्टर शिवांगी मिश्रा, राम सिंह रहे।व्यवस्थापक किशन सिंह, गोपी सिंह, हर्ष तिवारी, उत्कर्ष तिवारी, रहे। मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने कहा कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने मुगलों से युद्ध किया लेकिन बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म 09मई 1540ई को कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। आपके पिता राणा उदय सिंह द्वितीय थे आपकी मां जयबंता बाई थीं। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था। उन्होंने कम उम्र में हथियार, तलवार, भाला, घुड़सवारी, युद्ध कौशल का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था। सन 1567में चित्तौड़ को मुगल सेना ने घेर लिया था, ऐसे में बादशाह अकबर के हाथों में पड़ने के बजाय गोगंदा जानें का निर्णय पिता उदय सिंह द्वितीय ने किया। उस समय भी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप युद्ध करना चाहते थे लेकिन पिता की बात माननी पड़ी। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की ग्यारह पत्नियां थीं। उनके सत्रह पुत्र एवम पांच पुत्रियां थीं। राणा उदय सिंह द्वितीय ने जिंदा रहते ही छोटी रानी के पुत्र जगमल को राजा नियुक्त कर दिया। जगमल मे राजा बनने के गुण नहीं थे, सन 1572में उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद महामंत्री से लेकर सभी ने 1572मे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया और वह राजा बने। नाराज होकर जगमल बादशाह अकबर से जा मिला। उस समय बादशाह अकबर दिल्ली का शासक था। उसकी रणनीति रही कि सभी राजाओं को अपने अधीन कर हिन्दुस्तान पर शासन करे। बहुत से राजाओं ने उसकी दासता स्वीकार कर ली और अपनी बहिन बेटियो को अकबर के हरम में भेज दिया। लेकिन स्वाभिमानी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। 1573में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के लिए बादशाह अकबर ने छह संधि प्रस्ताव भेजे उन्होंने अस्वीकार कर दिए जिससे क्रोधित होकर अकबर ने मेवाड़ पर हमला बोल दिया। उन्होंने मुगलों की सेना से युद्ध किया । सन 1576में हल्दी घाटी युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगलों की 80000हजार सेना से वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 30000हजारसेना ने युद्ध किया। हल्दी घाटी युद्ध 18जून1576को हुआ। इतिहास कार मानते हैं कि हल्दी घाटी युद्ध में मुट्ठी भर राजपूतों की सेना ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए और मुगल सेना को भगाकर दम लिया। भामाशाह ने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को अपनी पूरी करोड़ों की संपति दान कर दी थी। हम जरा से स्वार्थ में स्वाभिमान और ईमान को बेच देते हैं लेकिन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाई और हार नहीं मानी।जवान कौन ?जो स्वाभिमान और ईमान को न बेचे। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन से यही शिक्षा लेनी चाहिए। राजस्थान के इतिहास में 1582के दिवेर युद्ध एक महत्पूर्ण युद्ध माना जाता है क्योंकि इस युद्ध में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने खोए हुए राज्यों को पुन: प्राप्त किया था। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप पर फिल्म से लेकर कई सीरियल भी बने हैं। इस महान देशभक्त का निधन 19जनवरी 1597को चावण्ड मेवाड़ (वर्तमान मे चावंड, उदयपुर जिला राजस्थान भारत है) मे हुआ था। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप कभी मरते नहीं है वह भारत के इतिहास मे अमर महापुरुष है। पुन: वीर शिरोमणि को शत शत नमन। अध्यक्षता करते हुए श्री मति सृष्टि सिंह, संचालक नगर महामंत्री पण्डित बृजेंद्र प्रसाद तिवारी, विशिष्ट अतिथि श्री राहुल शर्मा, श्री मति सत्य प्रिया मिश्रा (नगर महामंत्री ब्राह्मण महिला महासभा), डॉक्टर शिवांगी मिश्रा, राम सिंह ने विचार व्यक्त करते हुए वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला। व्यवस्थाप्क किशन सिंह, गोपी सिंह, हर्ष तिवारी, उत्कर्ष तिवारी, पवन सिंह, अमन सिंह , अंकित कुमार आदि मौजूद रहे।